सूखे पेड़ पर शायरी के नए संकलन में वृक्ष की भावनाओं को दर्शाती रचनाएं। तरु मानवी जीवन को कितना कुछ देते है, हमारे लाइफ़ में उनका महत्वपूर्ण स्थान है ।वो हमे कुदरत की तरफ से मिला एक अनमोल और बहुमूल्य तोहफ़ा है ।
सूखे पेड़ पर कविताओ में पेड़ों का सूखापन और विराग हमें विचार करने की गहरी अवस्था के साथ-साथ जीवन की अनिवार्यता का भी संदेश देती है।
सूखे पेड़ पर शायरी – 52 रचनाएं
आइए,सूखे पेड़ पर बेहतरीन रचनाएं के माध्यम से जीवन के अनदेखे और अदृश्य सौंदर्य को सुनहरे शब्दों में पिरोते है।
1.
सुख गई है सारी पत्तियाँ और सुख गया है तना,
मालूम नहीं क्या होगा अब, पेड़ था कभी मैं घना ।
2.
बारिशों, आंधी, तूफ़ानों, बिजलियों ने गिराना चाहा,
फिर भी डटकर अपना सीना तान सदैव खड़ा रहा ।
3.
अंदेशा ना था रहा कभी मुझे यू अपनी तन्हाई का,
तन्हा खड़ा कोसों दूर अब अकेला अलग थलग सा ।
4.
कभी देता था जो सब को ठंड, सघन छाया,
पुराने दिन याद कर अकेला वो बहुत रोया ।
5.
सुख गया सारा अब तो बस सूखी लकड़ी हूं,
पहले सी बात नहीं फिर भी मैं खड़ा खुश हूं ।
6.
सूखा दरख़्त हूँ यही सूख कर यही गिरना है,
गिरकर भी किसी ना किसी के काम आना है ।
7.
मालूम था होगा यह अंजाम अपने सफर का,
जीवन के आखिरी पड़ाव के अंतिम सफर का ।
8.
सूखा जब तो परिंदों ने ठिकाना बदल दिया,
आस लगाकर क्यों बैठते आने की नई पत्तियां ।
9.
कभी देता था जो सब को ठंड, सघन छाया,
पुराने दिन याद कर अकेला वो बहुत रोया ।
10.
मुस्कुराता रहता बड़ा हरा भरा जब सा वो पेड़ था,
अंतिम दिनों में तन्हाई संग बस जी रहा लकड़ी सा ।
11.
दरख्त कब ज़िंदगी अकेला जिया,
मिट्टी को पकड़े वो हमेशा मिला पाया ।
12.
सूखा हूं बुढ़ा हूं अब बस अकेले जीने दो,
ना कांटों ना कष्ट दो अकेला खड़ा रहने दो ।
13.
सूखे पेड़ों पर हरे पत्ते हरे-भरे पत्ते,
नहीं दिखते फिर हंसते खेलते पत्ते ।
14.
जिंदगी की कसौटी का दर्द मन में छुपाये पड़ा है,
आँसू छुपाते अंतिम समय में अकेला चुप खड़ा है ।
15.
सूखे पेड़ सीखाते सुखकर भी मुस्कुराते जीना,
बड़े गुरुर से कहते शान से जिंदगी जीते जाना ।
16.
सूखे दरख्तों से कोई न करे पहले सा प्यार,
यह एक सच भला इससे किसी को नहीं इंकार ।
17.
सूखा पेड़ मजबूत इंसान की पहचान,
सूख गया अब जिंदगी जीते हुए अपनी शान ।
18.
मिले बहुत सबक जिंदगी के हंसते खेलते,
पर हार न मानी कभी जिंदगी जीते जीते ।
19.
हिकारत से अब हमको ना देखो,
यही जिंदगी है हम से तुम सीखो ।
20.
सूखे पेड़ एक वक्त गिर ही जाते,
पर सारी उम्र शान से खड़े मिलते ।
21.
संवेदना जुड़ी होनी चाहिए सूखे पेड़ों से,
यही सबका जीवन यह सबकी नियति ।
22.
सूख गए पेड़ पर नहीं सूखे वो जड़ से,
फिर भी क्यों जाते पेड़ से परिंदे उड़कर ?
23.
सूखे दरख्त को देख पता चलता है,
बिछड़ने का ग़म कितना रुलाता है ।
24.
सारे पत्ते बिखर गए बस बाकी कुछ पुरानी टहनियां,
पेड़ की अब जरूरत नहीं ये वक्त ने उसे समझाया ।
25.
सूखा दरख्त फिर कहां खिलता है,
पर हौंसले वो कभी टूटने ना देता है ।
26.
वक्त की गर्दिशों मे पेड़ सूख जब गया,
परिंदों ने अपना ठिकाना ही बदल दिया ।
27.
आज अंतिम समय जब सूख सा गया हूं मैं,
अपनी जड़ों की जमीन से तो जुड़ा हूं मैं ।
28.
आज अकेला निर्भय निर्विकार खड़ा हूं,
कोई नहीं साथ पर जमीन से जुड़ा हूं ।
29.
अब रहा नहीं बाकी कुछ मुझमे,
यही सोचकर थोड़ा सहमा सा हूं |
30.
जो मेरी छांव में बैठने को थे तरसते,
अब ना कोई आसपास मेरे भटकते ।
31.
सूख गया हूं तब अजीब सा मंजर है,
सूखा मेरा तना तो आँखों में समंदर है ।
32.
बरसात के मौसम में भी सूखा ही रहता हूं,
अंदर और बाहर से शुष्क जो हुआ हूं ।
33.
होती नहीं अब मुझपर प्रेम भावों की वर्षा,
खुद जो सूख गया तो भाव भी सूखे होंगे क्या ।
34.
सूखा पेड़ समझकर दुत्कार न देना,
असहाय समझ कर फुफकार न देना ।
35.
किसी एक दरख्त से वफा नहीं करते परिंदे,
शजर में जब फल हो तभी घरोंदे बनाते परिंदे ।
36.
दर्द की बेइंतहा में हम भी सूखे दरख्त बन जाते,
फूलों से नाजुक थे कभी जो फिर सख्त बन जाते |
37.
तूफानों से लड़ते जब दरख्तों को देखा,
मुश्किलों से कैसे लड़ना दरख्तों से सीखा ।
38.
जिस दरख़्त तले था कभी आशियाना उसका,
लकड़ियां काम आयी वही फिर श्मशान में अभी ।
39.
औरत भी एक मजबूत दरख्त होती,
सहारे की तलाश में वो कभी ना रहती ।
40.
तुम अपने दरख्त होने का गुमां ना करो,
मुझे तुम्हारे छांव का सूख नहीं चाहिए ।
41.
बीज से दरख्त बनाने में वक्त लगता है,
खुद का वक्त आने में भी वक्त लगता है।
42.
दरख्तों भी शाखाओं को मौसम हरा ना कर पाता,
बहरों के शहर में कोई सच्ची बात कहा सुन पाता ।
43.
बहारो का असर सूखे दरख्तों पर नहीं होता,
गिर जाने से उठा लिया टुकड़ों में उनको जाता |
44.
देखे है खिजांओ में खड़े झुलसते दरख्त,
कभी जो छांव में थके को बैठाते थे दरख्त ।
45.
आरज़ूओं के दरख्त फिर हरे ना होते,
हकीकतों से दरख्तों के वास्ते जब पड़ते।
46.
मैं बेशक मजबूत औरत दरख़्त भी हूं,
तजुर्बे से बनी मार्मिक और सख्त भी हूं ।
47.
आँधियों तुमने जोर से दरख्तों को हिलाया होगा,
फिर दर्द सहने लायक दरख्तों को बनाया भी होगा ।
48.
राह ना किसी की देखता हूं, ना उम्मीद रखता हूं,
धूप की छांव में,दरख्त मैं बेबस खड़ा रहता हूं ।
49.
सूखे जब पल्लव, हर शाखा, हर पाती,
तब से किसी को मेरी काया ना भाती।
50.
फुल और फल आते थे बेशुमार,
कभी मैं भी था हरियाली की बहार।
51.
दर्द तो सूखे पेड़ों को होता है,
बसंत में वो हरा जो नहीं हो पाता है ।
52.
सूखे दरख्तों को परिंदे भूल जाते है,
बदलते मौसम भी शाखों पे अंकुर नहीं लाते है।
उम्मीद करती हूं सूखे पेड़ पर शायरी आपको पसंद आयी होगी, आपके comments और सुझावों का इंतजार रहेगा. धन्यवाद.
Hi! I’m Jayshree! I am the Founder of ‘Poesy Ville’. I am a Poetess dedicated to creating rhymes on a daily basis – on the internet and in life.